वर्धा (संवाददाता)- विदर्भ के किसानों को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बनाने के लिए औषधीय पौधों की खेती करनी चाहिए। आयुर्वेदिक, औषधीय और सगंध प्रजातियों के पौधे किसानों के लिए जोखिम मुक्त होते है। इसकी खेती करने से कम लागत, कम समय में अधिक फायदा होने की पूरी-पूरी संभावनाएं है। औषधीय पौधों की बाजार में काफी मांग बढ़ रही है। उक्त बातें केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, (सीमैप) लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. सौदान सिंह ने कही। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की पहल पर प्रतिकुलपति प्रो. आनंद वर्धन शर्मा की अध्यक्षता में बुधवार को एक बैठक आयोजित की गयी थी जिसका मुख्य उद्देश्य विदर्भ के किसानों को पारंपरिक खेती के अतिरिक्त औषधीय, आयुर्वेदिक एवं सगंध पौधों की खेती के प्रति जागरूक कर उन्हें इस तरह की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना था। बैठक में सीमैप के डॉ. महेंद्र दारोकार, अशोक ननावरे, मनोज सेमवाल, ज्ञानेश्वर बावनकुले, डॉ. आर. के वर्मा, विवि के कुलसचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र, वर्धा के ग्रामपयोगी विज्ञान केंद्र के कार्यकारी निदेशक, डॉ. सोहम पण्डया, निसर्ग सेवा समिति के अध्यक्ष मुरलीधर बेलखोडे, जानकी देवी बजाज संस्थान के प्रकल्प समन्वयक विनेश काकड़े,िदमाअंगरबलयम लॉयन्स क्लब गांधी सिटी के अनिल नरेडी, नेहरू युवा केंद्र, भारत सरकार के समन्वयक संजय माटे, यशवंतराव दाते संस्था के प्रदीप दाते, दत्ता मेघे आयुर्विज्ञान संस्थान डिम्ड विवि के आयुर्वेदिक महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. शाम भुतडा व डॉ. प्रमोद खोब्रागडे, जानकी देवी बजाज विज्ञान महाविद्यालय की डॉ. प्रतिभा धाबर्डे व डॉ. धीरज नाईक, किसान संजय अवचट, गोपाल व धनंजय अग्रवाल, विवि के डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे उपस्थित थे।
सीमैप के वैज्ञानिकों ने बताया कि विदर्भ में किसानों की समस्या और यहां की मिट्टी की गुणवत्ता को देखते हुए सीमैप ने विभिन्न प्रकार के औषधीय और सगंध पौधों तथा फुलों की प्रजातियों को विकसित की हैं। ऐसी बीस से अधिक प्रजातियां है जिसे विदर्भ की जमीन में लगाया जा सकता है। उन्होंने अनेक राज्यों में हुए सफल प्रयोगों का प्रस्तुतीकरण देते हुए कहा कि किसानों को आनेवाला खर्च घटाकर पैदावर बढ़ाना हमारा मुख्य उद्देश्य है। ये पौधे कम पानी में और सिंचित तथा अ-सिंचित खेती पर भी अच्छी फसल देते हैं। किसानों की मांग पर ऐसे पौधे सीमैप खुदही उपलब्ध कराता है। लेमन ग्रास और पामारोमा जैसे घास लगाने से तीन महीने में अच्छी फसल ले सकते हैं और इसे जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचा सकते। औषधीय पौधों से निकलने वाले तेल की बाजार में काफी मांग है। उसकी बुआई से लेकर तेल निकालने की प्रक्रिया और उससे जुड़ी तकनीक किसानों को मुहैया कराने की दिशा में प्रयास जारी हैं। किसानों को प्रशिक्षण देने की बात भी वैज्ञानिकों ने कही।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रतिकुलपति प्रो. आनंद वर्धन शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय का मुख्य कार्य शिक्षा से जुड़ा है, परंतु हम चाहते है कि यहां के समाज के साथ भी आदान-प्रदान बढ़ाया जाए और इसी दिशा में इस बैठक का आयोजन किया गया। उन्होंने बैठक में उपस्थित प्रतिनिधियों से आहवान किया कि इस क्षेत्र की सामाजिक, पर्यावरण और किसानों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए हम सब एक-दूसरे का सहयोग करें। इस अवसर पर उन्होंने उनकी लिखी पुस्तक ‘औषधीय पौधों की कहानी उन्हीं की जुबानी’ की प्रतियां प्रतिनिधियों को भेंट की। बैठक में उपस्थित सभी ने अपने-अपने सुझाव दिए और क्षेत्र की बेहतरी के लिए सहयोग करने का संकल्प किया। सीमैप के वैज्ञानिकों ने विवि के गांधी हिल और अन्य स्थानों को भेंट दी। बैठक का स्वागत वक्तव्य बी. एस. मिरगे ने दिया। संचालन डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने किया। बैठक के बाद प्रतिनिधियों द्वारा भाषा विद्यापीठ तथा प्रशासनिक भवन के परिसर में वृक्षारोपण किया गया। इस अवसर पर वित्त अधिकारी पी. एस. सिंह, ज्योतिष पायेंग, संजय तिवारी, अजय कुमार, अश्विन श्रीवास, दीपक, रामजस आदि उपस्थित थे।