नई दिल्ली 26 फरवरी 2012, नूर-ऐन-अहमद
मुंगेर, बिहार के प्रसिद्ध ध्यान गुरु स्वामी रत्नेश्वरानंद उर्फ़ बाबा राम रतन के अनुसार ध्यान के द्वारा समस्त रोगों का उपचार किया जा सकता है, आवश्यकता है तो बस इसे आत्मिक रूप से अपनाने की एवं अपने जीवन में उतारने की। यह बात बाबा राम रतन ने दिल्ली हाट में चल रहे चार दिवसीय आरोग्य महापर्व "आरोग्य उत्सव 2012" में newsdeskmedia से हुए एक साक्षात्कार में कही।
साक्षात्कार के दौरान बाबा जी ने बताया कि हम ध्यान योग से रोगों को हमेशा अपने शरीर से दूर रख सकते हैं क्योंकि व्याधि आने के पहले आधि आती हैं (इसलिए इसे आधि - व्याधि बोलते हैं)। व्याधि शरीर में होता हैं और आधि मन में, और मन सूक्ष्म में होता है इस प्रकार स्थूल शरीर में रोग आने से पहले सूक्ष्म शरीर में आता है और सूक्ष्म शरीर में आने के कारण स्थूल शरीर में आता है। इसलिए इसका विवेचन निदान और निराकरण ध्यान से ही होता है क्योंकि ध्यान से मनुष्य का गमनागमन स्थूल से सूक्ष्म में, सूक्ष्म से कारण, कारण से महाकारण, महाकारण से कैवल्य में होता है वहीँ पर चल कर जीव स्व में स्थित होकर स्वस्थ होता है और यहीं पर स्वस्थ कि प्राप्ति होती है।
यह प्रश्न करने पर कि "अगर ध्यान से ही सारे रोग दूर हो जाते तो आयुर्वेद सहित अन्य चिकित्सा पद्धतियों में औषधियों कि आवश्यकता क्यों होती?" के उत्तर में कहा कि औषधियों से केवल आंशिक निदान ही मिलता और केवल शरीर ही स्वस्थ हो पाता है जबकि ध्यान से मनुष्य का शरीर एवं मन दोनों ही स्वस्थ हो जाते हैं तथा मनुष्य को रोगों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए उन्होंने सभी मनुष्यों से ध्यान करने कि प्रवृत्ति डालने की अपील की। बाबा राम रतन के अनुसार लोगों को आत्म ज्ञान के लिए ध्यान करना पड़ेगा, आदमी सब कुछ जानने कि कोशिश करता है परन्तु स्वयं को जानने की कोशिश नहीं करता है जो अपने आपको जान लेता है उसे कुछ भी जानने कि आवश्कता नहीं रहती है। इसलिए सोने के समय जब मनुष्य खुद विश्राम करता है तो सारे दुखों को भूल जाता है।
बाबा राम रतन जी ने आध्यात्म को परमात्मा से जोड़ते हुए कहा कि आत्म ज्ञान ही प्रभु ज्ञान है आत्म ज्ञान की चर्चा उपनिषदों में भी मिलती है और वहां पर जीवात्मा और परमात्मा के लिए एक ही शब्द का प्रयोग हुआ है जैसे समुद्र का पानी किसी लोटे में हो तो भी दोनों पानी ही कहलायेंगे। अंधकार, प्रकाश, शब्द और निः शब्द से घिरी आत्मा जीवात्मा कहलाती है और आवरण रहित आत्मा परमात्मा कहलाती है।
स्वामी रत्नेश्वरानंद उर्फ बाबा राम रतन
सन्तमत सत्संग आश्रम,
बाई चक पाटम, मुंगेर (बिहार)